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PM Narendra Modi Mann Ki Baat With Farmers in Hindi. Text of Prime Minister’s ‘Mann kiBaat’ on All India Radio
मेरे प्यारे किसान भाइयो और बहनो, आप सबको नमस्कार!
ये मेरा सौभाग्य है कि आज मुझे देश के दूर सुदूर गाँव में रहनेवाले मेरे किसान भाइयों और बहनों से बात करने का अवसर मिला है। और जब मैंकिसान से बात करता हूँ तो एक प्रकार से मैं गाँव से बात करता हूँ, गाँववालों से बात करता हूँ, खेत मजदूर से भी बात कर रहा हूँ। उन खेत में कामकरने वाली माताओं बहनों से भी बात कर रहा हूँ। और इस अर्थ में मैं कहूं तोअब तक की मेरी सभी मन की बातें जो हुई हैं, उससे शायद एक कुछ एक अलग प्रकारका अनुभव है।
जब मैंने किसानों के साथ मन की बात करने के लिए सोचा, तो मुझेकल्पना नहीं थी कि दूर दूर गावों में बसने वाले लोग मुझे इतने सारे सवालपूछेंगे, इतनी सारी जानकारियां देंगे, आपके ढेर सारे पत्र, ढेर सारे सवाल, ये देखकर के मैं हैरान हो गया। आप कितने जागरूक हैं, आप कितने सक्रिय हैं, और शायद आप तड़पते हैं कि कोई आपको सुने। मैं सबसे पहले आपको प्रणाम करताहूँ कि आपकी चिट्ठियाँ पढ़कर के उसमें दर्द जो मैंने देखा है, जो मुसीबतेंदेखी हैं, इतना सहन करने के बावजूद भी, पता नहीं क्या-क्या आपने झेला होगा।
आपने मुझे तो चौंका दिया है, लेकिन मैं इस मन की बात का, मेरे लिएएक प्रशिक्षण का, एक एजुकेशन का अवसर मानता हूँ। और मेरे किसान भाइयो औरबहनो, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि आपने जितनी बातें उठाई हैं, जितनेसवाल पूछे हैं, जितने भिन्न-भिन्न पहलुओं पर आपने बातें की हैं, मैं उनसबके विषय में, पूरी सरकार में जागरूकता लाऊँगा, संवेदना लाऊँगा, मेरागाँव, मेरा गरीब, मेरा किसान भाई, ऐसी स्थिति में उसको रहने के लिए मजबूरनहीं किया जा सकता। मैं तो हैरान हूँ, किसानों ने खेती से संबधित तो बातेंलिखीं हैं। लेकिन, और भी कई विषय उन्होंने कहे हैं, गाँव के दबंगों सेकितनी परेशानियाँ हैं, माफियाओं से कितनी परेशानियाँ हैं, उसकी भी चर्चा कीहै, प्राकृतिक आपदा से आने वाली मुसीबतें तो ठीक हैं, लेकिन आस-पास केछोटे मोटे व्यापारियों से भी मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं।
किसी ने गाँव में गन्दा पानी पीना पड़ रहा है उसकी चर्चा की है, किसी ने गाँव में अपने पशुओं को रखने के लिए व्यवस्था की चिंता की है, किसीने यहाँ तक कहा है कि पशु मर जाता है तो उसको हटाने का ही कोई प्रबंध नहींहोता, बीमारी फैल जाती है। यानि कितनी उपेक्षा हुई है, और आज मन की बात सेशासन में बैठे हुए लोगों को एक कड़ा सन्देश इससे मिल रहा है। हमें राज करनेका अधिकार तब है जब हम इन छोटी छोटी बातों को भी ध्यान दें। ये सब पढ़ करके तो मुझे कभी कभी शर्मिन्दगी महसूस होती थी, कि हम लोगों ने क्या कियाहै! मेरे पास जवाब नहीं है, क्या किया है? हाँ, मेरे दिल को आपकी बातें छूगयी हैं। मैं जरूर बदलाव के लिए, प्रामाणिकता से प्रयास करूंगा, और उसकेसभी पहलुओं पर सरकार को, जगाऊँगा, चेताऊंगा, दौडाऊंगा, मेरी कोशिश रहेगी, ये मैं विश्वास दिलाता हूँ।
मैं ये भी जानता हूँ कि पिछले वर्ष बारिश कम हुई तो परेशानी तो थीही थी। इस बार बेमौसमी बरसात हो गयी, ओले गिरे, एक प्रकार से महाराष्ट्र सेऊपर, सभी राज्यों में, ये मुसीबत आयी।और हर कोने में किसान परेशान होगया। छोटा किसान जो बेचारा, इतनी कड़ी मेहनत करके साल भर अपनी जिन्दगीगुजारा करता है, उसका तो सब कुछ तबाह हो गया है। मैं इस संकट की घड़ी मेंआपके साथ हूँ। सरकार के मेरे सभी विभाग राज्यों के संपर्क में रह करकेस्थिति का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं, मेरे मंत्री भी निकले हैं, हरराज्य की स्थिति का जायजा लेंगे, राज्य सरकारों को भी मैंने कहा है किकेंद्र और राज्य मिल करके, इन मुसीबत में फंसे हुए सभी किसान भाइयों-बहनोंको जितनी ज्यादा मदद कर सकते हैं, करें। में आपको विश्वास दिलाता हूँ किसरकार पूरी संवेदना के साथ, आपकी इस संकट की घड़ी में, आपको पूरी तत्परता सेमदद करेगी। जितना हो सकता है, उसको पूरा करने का प्रयास किया जायेगा।
गाँव के लोगों ने, किसानों ने कई मुददे उठाये हैं। सिंचाई की चिंताव्यापक नजर आती है। गाँव में सड़क नहीं है उसका भी आक्रोश है। खाद कीकीमतें बढ़ रही हैं, उस पर भी किसान की नाराजगी है। बिजली नहीं मिल रही है।किसानों को यह भी चिंता है कि बच्चों को पढ़ाना है, अच्छी नौकरी मिले ये भीउनकी इच्छा है, उसकी भी शिकायतें हैं। माताओं बहनों की भी, गाँव में कहींनशा-खोरी हो रही है उस पर अपना आक्रोश जताया है। कुछ ने तो अपने पति कोतम्बाकू खाने की आदत है उस पर भी अपना रोष मुझे व्यक्त करके भेजा है। आपकेदर्द को मैं समझ सकता हूँ। किसान का ये भी कहना है की सरकार की योजनायें तोबहुत सुनने को मिलती हैं, लेकिन हम तक पहुँचती नहीं हैं। किसान ये भी कहताहै कि हम इतनी मेहनत करते हैं, लोगों का तो पेट भरते हैं लेकिन हमारा जेबनहीं भरता है, हमें पूरा पैसा नहीं मिलता है। जब माल बेचने जाते हैं, तोलेने वाला नहीं होता है। कम दाम में बेच देना पड़ता है। ज्यादा पैदावार करेंतो भी मरते हैं, कम पैदावार करें तो भी मरते हैं। यानि किसानों ने अपने मनकी बात मेरे सामने रखी है। मैं मेरे किसान भाइयों-बहनों को विश्वास दिलाताहूँ, कि मैं राज्य सरकारों को भी, और भारत सरकार के भी हमारे सभी विभागोंको भी और अधिक सक्रिय करूंगा। तेज गति से इन समस्याओं के समाधान के रास्तेखोजने के लिए प्रेरित करूँगा। मुझे लग रहा है कि आपका धैर्य कम हो रहा है।बहुत स्वाभाविक है, साठ साल आपने इन्तजार किया है, मैं प्रामाणिकता सेप्रयास करूँगा।
किसान भाइयो, ये आपके ढेर सारे सवालों के बीच में, मैंने देखा हैकि करीब–करीब सभी राज्यों से वर्तमान जो भूमि अधिग्रहण बिल की चर्चा है, उसका प्रभाव ज्यादा दिखता है, और मैं हैरान हूँ कि कैसे-कैसे भ्रम फैलाए गएहैं। अच्छा हुआ, आपने छोटे–छोटे सवाल मुझे पूछे हैं। मैं कोशिश करूंगा किसत्य आप तक पहुचाऊं। आप जानते हैं भूमि-अधिग्रहण का कानून 120 साल पहले आयाथा। देश आज़ाद होने के बाद भी 60-65 साल वही कानून चला और जो लोग आजकिसानों के हमदर्द बन कर के आंदोलन चला रहे हैं, उन्होंने भी इसी कानून केतहत देश को चलाया, राज किया और किसानों का जो होना था हुआ। सब लोग मानते थेकि कानून में परिवर्तन होना चाहिए, हम भी मानते थे। हम विपक्ष में थे, हमभी मानते थे।
2013 में बहुत आनन-फानन के साथ एक नया कानून लाया गया। हमने भी उससमय कंधे से कन्धा मिलाकर के साथ दिया। किसान का भला होता है, तो साथ कौननहीं देगा, हमने भी दिया। लेकिन कानून लागू होने के बाद, कुछ बातें हमारेज़हन में आयीं। हमें लगा शायद इसके साथ तो हम किसान के साथ धोखा कर रहे हैं।हमें किसान के साथ धोखा करने का अधिकार नहीं है। दूसरी तरफ जब हमारी सरकारबनी, तब राज्यों की तरफ से बहुत बड़ी आवाज़ उठी। इस कानून को बदलना चाहिए, कानून में सुधार करना चाहिए, कानून में कुछ कमियां हैं, उसको पूरा करनाचाहिए। दूसरी तरफ हमने देखा कि एक साल हो गया, कोई कानून लागू करने कोतैयार ही नहीं कोई राज्य और लागू किया तो उन्होंने क्या किया? महाराष्ट्रसरकार ने लागू किया था, हरियाणा ने किया था जहां पर कांग्रेस की सरकारेंथीं और जो किसान हितैषी होने का दावा करते हैं उन्होंने इस अध्यादेश में जोमुआवजा देने का तय किया था उसे आधा कर दिया। अब ये है किसानों के साथन्याय? तो ये सारी बातें देख कर के हमें भी लगा कि भई इसका थोडा पुनर्विचारहोना ज़रूरी है। आनन–फानन में कुछ कमियां रह जाती हैं। शायद इरादा ग़लत नहो, लेकिन कमियाँ हैं, तो उसको तो ठीक करनी चाहिए।…और हमारा कोई आरोप नहींहै कि पुरानी सरकार क्या चाहती थी, क्या नहीं चाहती थी? हमारा इरादा यही हैकि किसानों का भला हो, किसानों की संतानों का भी भला हो, गाँव का भी भलाहो और इसीलिए कानून में अगर कोई कमियां हैं, तो दूर करनी चाहिए। तो हमाराएक प्रामाणिक प्रयास कमियों को दूर करना है।
अब एक सबसे बड़ी कमी मैं बताऊँ, आपको भी जानकर के हैरानी होगी किजितने लोग किसान हितैषी बन कर के इतनी बड़ीभाषणबाज़ी कर रहें हैं, एक जवाबनहीं दे रहे हैं। आपको मालूम है, अलग-अलग प्रकार के हिंदुस्तान में 13 कानून ऐसे हैं जिसमें सबसे ज्यादा जमीन संपादित की जाती है, जैसे रेलवे, नेशनल हाईवे, खदान के काम। आपको मालूम है, पिछली सरकार के कानून में इन 13 चीज़ों को बाहर रखा गया है। बाहर रखने का मतलब ये है कि इन 13 प्रकार केकामों के लिए जो कि सबसे ज्यादा जमीन ली जाती है, उसमें किसानों को वहीमुआवजा मिलेगा जो पहले वाले कानून से मिलता था। मुझे बताइए, ये कमी थी किनहीं? ग़लती थी कि नहीं? हमने इसको ठीक किया और हमने कहा कि भई इन 13 में भीभले सरकार को जमीन लेने कि हो, भले रेलवे के लिए हो, भले हाईवे बनाने केलिए हो, लेकिन उसका मुआवजा भी किसान को चार गुना तक मिलना चाहिए। हमनेसुधार किया। कोई मुझे कहे, क्या ये सुधार किसान विरोधी है क्या? हमेंइसीलिए तो अध्यादेश लाना पड़ा। अगर हम अध्यादेश न लाते तो किसान की तो जमीनवो पुराने वाले कानून से जाती रहती, उसको कोई पैसा नहीं मिलता। जब ये कानूनबना तब भी सरकार में बैठे लोगों में कईयों ने इसका विरोधी स्वर निकला था।स्वयं जो कानून बनाने वाले लोग थे, जब कानून का रूप बना, तो उन्होंने तोबड़े नाराज हो कर के कह दिया, कि ये कानून न किसानों की भलाई के लिए है, नगाँव की भलाई के लिए है, न देश की भलाई के लिए है। ये कानून तो सिर्फअफसरों कि तिजोरी भरने के लिए है, अफसरों को मौज करने के लिए, अफ़सरशाही कोबढ़ावा देने के लिए है। यहाँ तक कहा गया था। अगर ये सब सच्चाई थी तो क्यासुधार होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? ..और इसलिए हमने कमियों को दूर करके किसानों का भला करने कि दिशा में प्रयास किये हैं। सबसे पहले हमने कामकिया, 13 कानून जो कि भूमि अधिग्रहण कानून के बाहर थे और जिसके कारण किसानको सबसे ज्यादा नुकसान होने वाला था, उसको हम इस नए कानून के दायरे में लेआये ताकि किसान को पूरा मुआवजा मिले और उसको सारे हक़ प्राप्त हों। अब एकहवा ऐसी फैलाई गई कि मोदी ऐसा कानून ला रहें हैं कि किसानों को अब मुआवजापूरा नहीं मिलेगा, कम मिलेगा।
मेरे किसान भाइयो-बहनो, मैं ऐसा पाप सोच भी नहीं सकता हूँ। 2013 केपिछली सरकार के समय बने कानून में जो मुआवजा तय हुआ है, उस में रत्ती भरभी फर्क नहीं किया गया है। चार गुना मुआवजा तक की बात को हमने स्वीकारा हुआहै। इतना ही नहीं, जो तेरह योजनाओं में नहीं था, उसको भी हमने जोड़ दियाहै। इतना ही नहीं, शहरीकरण के लिए जो भूमि का अधिग्रहण होगा, उसमें विकसितभूमि, बीस प्रतिशत उस भूमि मालिक को मिलेगी ताकि उसको आर्थिक रूप से हमेशालाभ मिले, ये भी हमने जारी रखा है। परिवार के युवक को नौकरी मिले। खेतमजदूर की संतान को भी नौकरी मिलनी चाहिए, ये भी हमने जारी रखा है। इतना हीनहीं, हमने तो एक नयी चीज़ जोड़ी है। नयी चीज़ ये जोड़ी है, जिला के जो अधिकारीहैं, उसको इसने घोषित करना पड़ेगा कि उसमें नौकरी किसको मिलेगी, किसमेंनौकरी मिलेगी, कहाँ पर काम मिलेगा, ये सरकार को लिखित रूप से घोषित करनापड़ेगा। ये नयी चीज़ हमने जोड़ करके सरकार कि जिम्मेवारी को Fix किया है।
मेरे किसान भाइयो-बहनो, हम इस बात पर agree हैं, कि सबसे पहलेसरकारी जमीन का उपयोग हो। उसके बाद बंजर भूमि का उपयोग हो, फिर आखिर मेंअनिवार्य हो तब जाकर के उपजाऊ जमीन को हाथ लगाया जाये, और इसीलिए बंजर भूमिका तुरंत सर्वे करने के लिए भी कहा गया है, जिसके कारण वो पहली priority वो बने।
एक हमारे किसानों की शिकायत सही है कि आवश्यकता से अधिक जमीन हड़पली जाती है। इस नए कानून के माध्यम से मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँकि अब जमीन कितनी लेनी, उसकी पहले जांच पड़ताल होगी, उसके बाद तय होगा किआवश्यकता से अधिक जमीन हड़प न की जाए। कभी-कभी तो कुछ होने वाला है, कुछहोने वाला है, इसकी चिंता में बहुत नुकसान होता है। ये Social Impact Assessment (SIA) के नाम पर अगर प्रक्रिया सालों तक चलती रहे, सुनवाई चलतीरहे, मुझे बताइए, ऐसी स्थिति में कोई किसान अपने फैसले कर पायेगा? फसल बोनीहै तो वो सोचेगा नहीं-नहीं यार, पता नहीं, वो निर्णय आ जाएगा तो, क्याकरूँगा? और उसके 2-2, 4-4, साल खराब हो जाएगा और अफसरशाही में चीजें फसीरहेंगी।प्रक्रियाएं लम्बी, जटिल और एक प्रकार से किसान बेचारा अफसरों केपैर पकड़ने जाने के लिए मजबूर हो जाएगा कि साहब ये लिखो, ये मत लिखों, वोलिखो, वो मत लिखो, ये सब होने वाला है। क्या मैं मेरे अपने किसानों को इसअफसरसाही के चुंगल में फिर एक बार फ़सा दूं? मुझे लगता है वो ठीक नहीं होगा।प्रक्रिया लम्बी थी, जटिल थी। उसको सरल करने का मैंने प्रयास किया है।
मेरे किसान भाइयो-बहनो 2014 में कानून बना है, लेकिन राज्यों नेउसको स्वीकार नहीं किया है। किसान तो वहीं का वहीं रह गया।राज्यों नेविरोध किया। मुझे बताइए क्या मैं राज्यों की बात सुनूं या न सुनूं? क्यामैं राज्यों पर भरोसा करूँ या न करूँ? इतना बड़ा देश, राज्यों पर अविश्वासकरके चल सकता है क्या? और इसलिए मेरा मत है कि हमें राज्यों पर भरोसा करनाचाहिये, भारत सरकार में विशेष करना चाहिये तो, एक तो मैं भरोसा करना चाहताहूँ, दूसरी बात है, ये जो कानून में सुधार हम कर रहे हैं, कमियाँ दूर कररहे हैं, किसान की भलाई के लिए जो हम कदम उठा रहे हैं, उसके बावजूद भी अगरकिसी राज्य को ये नहीं मानना है, तो वे स्वतंत्र हैं और इसलिए मैं आपसेकहना चाहता हूँ कि ये जो सारे भ्रम फैलाए जा रहे हैं, वो सरासर किसानविरोधी के भ्रम हैं। किसान को गरीब रखने के षड्यन्त्र का ही हिस्सा हैं।देश को आगे न ले जाने के जो षडयंत्र चले हैं उसी का हिस्सा है। उससे बचनाहै, देश को भी बचाना है, किसान को भी बचाना है।
अब गाँव में भी किसान को पूछो कि भाई तीन बेटे हैं बताओ क्या सोचरहे हो? तो वो कहता है कि भाई एक बेटा तो खेती करेगा, लेकिन दो कोकहीं-कहीं नौकरी में लगाना है।अब गाँव के किसान के बेटों को भी नौकरीचाहिये। उसको भी तो कहीं जाकर रोजगार कमाना है। तो उसके लिए क्या व्यवस्थाकरनी पड़ेगी।तो हमने सोचा कि जो गाँव की भलाई के लिए आवश्यक है, किसान कीभलाई के लिये आवश्यक है, किसान के बच्चों के रोजगार के लिए आवश्यक है, ऐसीकई चीजों को जोड़ दिया जाए।उसी प्रकार से हम तो जय-जवान, जय-किसान वालेहैं। जय-जवान का मतलब है देश की रक्षा। देश की रक्षा के विषय मेंहिंदुस्तान का किसान कभी पीछे हटता नहीं है। अगर सुरक्षा के क्षेत्र मेंकोई आवश्कता हो तो वह जमीन किसानों से मांगनी पड़ेगी।..और मुझे विश्वास है, वो किसान देगा। तो हमने इन कामों के लिए जमीन लेने की बात को इसमें जोड़ाहै। कोई भी मुझे गाँव का आदमी बताए कि गाँव में सड़क चाहिये कि नहीं चाहिये।अगर खेत में पानी चाहिये तो नहर करनी पड़ेगी कि नहीं करनी पड़ेगी। गाँव मेंआज भी गरीब हैं, जिसके पास रहने को घर नहीं है। घर बनाने के लिए जमीनचाहिये की नहीं चाहिये? कोई मुझे बताये कि यह उद्योगपतियों के लिए है क्या? यह धन्ना सेठों के लिए है क्या? सत्य को समझने की कोशिश कीजिये।
हाँ, मैं एक डंके की चोट पर आपको कहना चाहता हूँ, नए अध्यादेश मेंभी, कोई भी निजी उद्योगकार को, निजी कारखाने वाले को, निजी व्यवसाय करनेवाले को, जमीन अधिग्रहण करने के समय 2013 में जो कानून बना था, जितने नियमहैं, वो सारे नियम उनको लागू होंगे।यह कॉर्पोरेट के लिए कानून 2013 केवैसे के वैसे लागू रहने वाले हैं।तो फिर यह झूठ क्यों फैलाया जाता है।मेरे किसान भाइयो-बहनो, एक भ्रम फैलाया जाता है कि आपको कानूनी हक नहींमिलेगा, आप कोर्ट में नहीं जा सकते, ये �
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